रिटेल इंवेस्टर्स ने बदला शेयर बाजार का ट्रेंड, एक्सपर्ट से जानिए क्या हैं इसके मायने

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नई दिल्लीः सेंसेक्स ने एक बार फिर 60,000 अंक को पार किया है. इससे पहले अगस्त में डिमैट अकाउंट्स की तादाद 10 करोड़ के बड़े आंकड़े के पार निकल गई. भारत अब दुनिया में सबसे शानदार प्रदर्शन करने वाला स्टॉक मार्केट बन गया है. इस मामले में भारत ने दुनिया के कई बड़े मार्केट्स को बड़े अंतर से पीछे छोड़ दिया है. फेड प्रमुख जेरोम पॉवेल के जैक्शन होल में अत्यंत कड़े रुख से सबसे बड़े बाजार अमेरिका में कमजोरी देखने को मिल रही है. S&P इस कैलेंडर ईयर में 15 फीसदी तक लुढ़क गया है जबकि निफ्टी करीब चार फीसदी ऊपर है. हम इस शानदार प्रदर्शन को किस तरह से एक्सप्लेन करेंगे? क्या सेंसेक्स के 60,000 के स्तर को छूने और डिमैट अकाउंट्स की तादाद के 10 करोड़ तक पहुंचने के बीच कोई लिंक है?

वैश्विक स्तर पर मैक्रो-इकोनॉमी की तस्वीर बाजार में इस तरह की तेजी के लिए अनुकूल प्रतीत नहीं हो रही है. दुनिया भर में ग्रोथ के तीन ड्राइवर्स – अमेरिका, चीन और यूरो जोन – में सुस्ती देखने को मिल रही है. यूरो जोन अभूतपूर्व ऊर्जा संकट का सामना कर रहा है और मंदी के कगार पर है. चीन प्रोपर्टी मार्केट से जुड़े संकट एवं बड़े पैमाने पर कोविड-19 से संबंधित लॉकडाउन की वजह से जूझ रहा है. अमेरिका की इकोनॉमी में मजबूत जॉब ग्रोथ देखने क मिल रही है. लेकिन इन सबसे बढ़कर ग्रोथ की रफ्तार कमी हुई है और बेरोजगारी दर 3.5 फीसदी से बढ़कर 3.7 फीसदी पर पहुंच गई है. अधिकतर सेंट्रल बैंक ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं और बॉन्ड यील्ड भी काफी अधिक बढ़ गया है. वैश्विक वृद्धि में 2023 में व्यापक स्तर पर सुस्ती देखने को मिल सकती है और बढ़ी हुई महंगाई में नरमी का कोई बड़ा संकेत नजर नहीं आ रहा है, खासकर विकसित देशों में. इन सभी मैक्रो इंडिकेटर्स से बुल मार्केट का शायद ही कोई संकेत नजर आ रहा है लेकिन अब बुल अपना स्थान ले रहे हैं.

रिटेल इंवेस्टर्स मार्केट को कर रहे हैं सपोर्ट
भारत में रिटेल इंवेस्टर्स उस समय काफी मजबूत सपोर्ट बनकर उभरे जब बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) लगातार बिकवाल बने हुए थे. सीधे और म्यूचुअल फंड के जरिए निवेश करने वाले रिटेल इंवेस्टर्स FPI की जगह पर मजबूत शक्ति बनकर उभरे. अगर हम जुलाई 2021 से जून 2022 की अवधि पर गौर करें तो यह बात निकलकर सामने आती है कि FPIs ने स्टॉक एक्सचेंज के जरिए करीब 40,92,21 करोड़ रुपये मूल्य के शेयरों की बिकवाली की. हालांकि, इस अवधि में मार्केट पर बहुत अधिक असर देखने को नहीं मिला क्योंकि इस अवधि में घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs) ने 32,8493 करोड़ रुपये मूल्य के शेयरों की लिवाली की. (Source: एनएसडीएल). मार्च 2020 में डिमैट अकाउंट्स की तादाद 4.09 करोड़ थी जो अगस्त 2022 में बढ़कर 10 करोड़ पर पहुंच गई. यह भारत के कैपिटल मार्केट में रिटेल इंवेस्टर्स के उत्साह को दिखाता है. इससे मार्केट में अच्छी रफ्तार देखने को मिली.

यह बात समझने की जरूरत है कि रिटेल/डीआईआई का इस समय मार्केट पर बहुत अधिक वर्चस्व है. एक्सचेंज पर डेली कैश मार्केट वॉल्यूम के मामले में रिटेल इंवेस्टर्स की हिस्सेदारी 52 फीसदी है. वहीं, DIIs और FPIs की हिस्सेदारी क्रमशः 29 फीसदी और 19 फीसदी है. रिटेल/ DIIs इस समय मजबूत स्थिति में हैं. यह स्थिति पहले से बिल्कुल उलट है जब FPIs के कदमों से बहुत अधिक असर देखने को मिलता था. मार्केट के नए Paradigm ने पूरे गेम को बदलकर रख दिया है.

FPIs ने समझ लिया है कि एक्जिट आसान है लेकिन इंट्री महंगा

एफपीआई ने इस बात को समझ लिया है कि भारतीय मार्केट से एग्जिट करना बहुत आसान है लेकिन इंट्री करना काफी महंगा है. जब एफपीआई पांच फीसदी स्टॉक की बिक्री करते हैं तो मार्केट में उछाल की वजह से उन्हें अपने बेचे गए शेयरों को दोबारा खरीदना मुश्किल पड़ता है. अगले कुछ साल तक बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत की ग्रोथ और कमाई की आमदनी की कहानी सबसे अच्छी साबित होने वाली है. इसी वजह से FPIs इस समय भारत में लिवाली कर रहे हैं और ऐसे समय में जब अमेरिका का 10 साल का बॉन्ड यील्ड 3.2 फीसदी से ऊपर है और डॉलर इंडेक्स 110 के आसपास है.

मार्केट को मिला फंडामेंटल सपोर्ट
रिटेल इंवेस्टर्स की भागीदारी भर से मार्केट में लगातार बढ़त देखने को नहीं मिल सकता है. इसे ठोस फंडामेंटल सपोर्ट की भी जरूरत है. इस साल और अगले साल भारत की ग्रोथ और कमाई की संभावनाएं सबसे ज्यादा मजबूत नजर आ रही हैं जब वैश्विक स्तर पर ग्रोथ की संभावनाएं थोड़ी कमजोर नजर आ रही हैं. आरबीआई के हालिया डेटा से ये बात सामने आती है कि भारत में क्रेडिट ग्रोथ 15.5 फीसदी के साथ 9 साल के उच्चतम स्तर पर है. यह मार्केट को मिलने वाला फंडामेंटल सपोर्ट है. मजबूत आर्थिक वृद्धि और रिटेल सेक्टर का उत्साह मार्केट में उछाल को सपोर्ट कर सकता है. इसके साथ ही निवेशकों को इस बात को लेकर सतर्क रहना चाहिए कि वैल्यूएशन अधिक होने की वजह से थोड़े भी निगेटिव ट्रिगर से मार्केट में करेक्शन देखने को मिल सकता है.

First published in Economic Times Hindi

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