धनी होने के लिए केवल बचत करना काफी नहीं, एक्सपर्ट से जानिए कारगर उपाय

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आप ऐसे कितनेलोगों को जानते हैं जो कम उम्र में ही इस दुनिया को छोड़कर चले गए और अपने ऊपर निर्भर लोगों के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा और क्या उन्हें रिश्तेदारों ने मदद की या फिर उन्हें गरीबी में जीवन व्यतीत करना पड़ा? आप ऐसे कितनेलोगों को जानते हैं जो ज्यादा उम्र होने के बावजूद काम कर रहे हैं या अपने बच्चों पर निर्भर है क्योंकि उनके पास कोई रिटायरमेंट फंड है या उन्हें किसी तरह का कर्ज चुकाना है जो उन्होंने काम करते हुए लिया था. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोग ऐसे काफी सारे लोगों के बारे में जानते होंगे और इन सवालों के लिए आपका जवाब ‘हां’ होगा.

पर्सनल फाइनेंस का प्रबंधन एक कला
Personal Finance का प्रबंधन करना एक महत्वपूर्ण कौशल है जो हर किसी को आना चाहिए. हालांकि, किसी भी स्कूल में आपको ये बात नहीं बताई जाएगी. तैयारी में कमी की वजह से हमारे समाज में ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है जिन्हें वित्तीय सफलता नहीं मिलती है. जो लोग अपने पर्सनल फाइनेंस को मैनेज करना सीख जाते हैं, वे जीवन के कई अन्य क्षेत्रों में भी सफल होते हैं. पर्सनल फाइनेंस को मैनेज करने के तरीकों को लेकर कई किताबें और वेबसाइट्स हैं जो पर्सनल फाइनेंस को सफलतापूर्वक मैनेज करने के लिए क्रमबद्ध मार्गनिर्देश उपलब्ध कराती हैं.

संतुलन बनाना है मुश्किल काम
बहुत सारे लोगों की वित्तीय मोर्चे पर असफलता की पहली वजह ये है कि उन्हें इससे जुड़ी जानकारी नहीं होती या वे इस बारे में ज्ञान हासिल करना नहीं चाहते हैं. जब पैसे-रुपये और आपकी योजनाओं की बात होती है तो कुछ समय की चाहत, लंबे समय के सपने और अचानक आने वाले खर्चों के बीच संतुलन बनाना बहुत मुश्किल काम होता है.

महंगाई को मात देने वाला रिटर्न जरूरी
महंगाई को मात देने के लिए हम अपने वित्तीय भविष्य की योजना नहीं बनाते हैं. हमारे में से अधिकतर लोग पैसों की बचत करते हैं लेकिन इससे आगे नहीं बढ़ पाते हैं. वे अपने पैसे बैंक सेविंग या फिक्स्ड डिपोजिट के रूप में ही छोड़ देते हैं. इन पैसों को लोग अक्सर निवेश नहीं करते हैं. हम सभी जानते हैं कि सेविंग अकाउंट पर मिलने वाली ब्याज की दर या एफडी की ब्याज दर महंगाई दर को शायद ही मात दे पाती है.

इसका मतलब ये है कि एक दिन की सब्जी के लिए अगर आज आपको 100 रुपये की जरूरत पड़ रही है तो पांच प्रतिशत की महंगाई दर के हिसाब से 15 साल बाद आपको एक दिन की सब्जी के लिए 200 रुपये की जरूरत होगी. इसी तरह अन्य खर्चे भी बढ़ेंगे. महंगाई दर के साथ खर्चे बढ़ेंगे और बहुत संभव है कि आपकी उस समय की आय बाद के वर्षों में आपके खर्चे को कवर करने के लिए काफी ना हो.

इसके लिए किसी भी व्यक्ति को अपनी वित्तीय जीवन से सम्बन्धित योजना बनाने की जरूरत पड़ती है. हमें इस चीज को समझने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत होती है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पर्सनल फाइनेंस से जुड़ी जरूरतों/ लक्ष्यों को कैसे पूरा कर सके. फाइनेंशियल एडवाइजर की मदद से ऐसा किया जा सकता है. इस लेख का मकसद पाठकों में इस बात की समझ विकसित करने की है कि पर्सनल फाइनेंस से जुड़ी योजना बनाने की जरूरत क्या है और आप किस प्रकार अपने फाइनेंस को एक क्रमबद्द तरीके से प्राप्त कर सकते हैं. इन तरीकों की सहायता से आप एक बुनियादी वित्तीय योजना बना पाएंगे.

इंश्योरेंस लेना सबसे अहम
अपना वित्तीय भविष्य सुरक्षित करने की ओर पहला कदम उठाते समय आपको सबसे पहले अपना इंश्योरेंस कराना चाहिए. अलग-अलग लक्ष्यों को ध्यान में रखकर निवेश करने का कोई मतलब नहीं है अगर आप पर निर्भर लोग आपके इस दुनिया में नहीं रहने पर अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं. यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि इंश्योरेंस आपके लिए नहीं बल्कि आप पर निर्भर लोगों के लिए होता है. बिमा राशि की रकम और उसके गणना मौजूदा बचे हुए कर्ज, भविष्य में आप पर निर्भर लोगों के खर्च को कवर करने वाली रकम, सभी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जरूरी रकम जैसे विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर किया जाता है. सामान्य तौर पर देखा जाए तो आपकी सालाना इनकम के 10 से 20 गुना तक हो सकता है. मैं लोन, खर्च या लक्ष्य के हिसाब से वैज्ञानिक गणना की सलाह दूंगा. इसके लिए जरूरी प्लानिंग में एक फाइनेंशियल एडवाइजर आपकी मदद जरूर कर सकता है.

लक्ष्य को ध्यान में रखकर निवेश जरूरी
इंश्योरेंस लेने के बाद किसी भी व्यक्ति को अपने लक्ष्यों को हासिल करने के तरीकों के बारे में गौर करने की जरूरत होगी. लक्ष्य कुछ भी हो सकता है- जैसे बच्चों की शिक्षा, उनकी शादी, रिटायरमेंट फंड तैयार करना या लग्जरी घर या कार इत्यादि खरीदना. अब सवाल ये है कि इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कहां इंवेस्ट करना चाहिए. निवेश से जुड़ा फैसला करने से पहले किसी भी व्यक्ति को अपनी रिस्क लेने की क्षमता का आकलन निश्चित तौर पर करना चाहिए. इसके तहत इस बात का आकलन जरूरी है कि इक्विटी या प्रोपर्टी जैसी जोखिम वाली संपत्तियों में कितने पैसे का निवेश किया जा सकता है या फिर एफडी, बॉन्ड्स जैसी बिना-जोखिम वाली परिसंपत्तियों में कितना अधिक निवेश किया जाना चाहिए. सामान्य तौर पर आप जितना अधिक रिस्क उठाएंगे, आपको उतना अधिक रिटर्न मिल सकता है. किसी भी अन्य एसेट क्लास के मुकाबले इक्विटी 10-15 साल की लंबी अवधि में बेहतर रिटर्न दे सकते हैं.

मैं प्रोपर्टी इंवेस्टमेंट की बात नहीं कर रहा हूं क्योंकि इनकी कीमत का कोई मापदंड नहीं है और अलग-अलग स्थानों पर रिटर्न में अंतर देखने को मिलता है. अगर आप पांच साल से ज्यादा अवधि को ध्यान में रखकर निवेश करने की सोच रहे हैं तो इक्विटी में निवेश आपके लिए सबसे उपयुक्त विकल्प है. हालांकि, इनमें उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है और उस अवधि के दौरान उथल-पुथल देखने को मिल सकता है. ऐसे में लोगों को थोड़े समय के उथल-पुथल को लेकर परेशान नहीं होना चाहिए. इक्विटी में कितना निवेश करना चाहिए, इसका जवाब जोखिम लेने की क्षमता को परिभाषित करने से मिलता है. कोई भी फाइनेंशियल प्लानर आपको वैज्ञानिक तरीके से रिस्क प्रोफाइल समझने में आपकी मदद कर सकता है. जोखिम लेने की क्षमता के आकलन के बाद का अगला चरण एसेट अलोकेशन होता है. अगर आप जोखिम ले सकते हैं तो आपको अपनी अतिरिक्त कमाई का 60 फीसदी से 95 फीसदी इक्विटी में इंवेस्ट करना चाहिए. अगर आप बिल्कुल रिस्क लेने से बचते हैं तो आपको 0 से लेकर 20 फीसदी का निवेश इक्विटी में करना चाहिए.

अन्यथा एक सर्वमान्य नियम ये है कि 100 में से अपनी उम्र को घटा लीजिए. अब जो नंबर आता है, उतना प्रतिशत का निवेश आप शेयरों में कर सकते हैं. इसका मतलब ये है कि जब आपकी उम्र कम होती है तो आप ज्यादा पैसे का निवेश इक्विटी में कर सकते हैं और जब आपकी उम्र बढ़ती है तो आप इक्विटी में अपना निरधारण कम कर सकते हैं. इसकी वजह ये है कि बढ़ती उम्र के साथ अपनी रिस्क लेने की आपकी क्षमता घट जाती है. अगर आपके पास कोई बढ़िया फाइनेंशियल एडवाइजर है तो आप किसी ब्रोकरेज हाउस के जरिए सीधे शेयरों में पैसे लगा सकते हैं. लेकिन अगर किसी के पास स्टॉक को चिह्नित करने का समय और एप्टीट्यूड नहीं है तो फिर म्यूचुअल फंड के जरिए शेयरों में निवेश एक बेहतर विकल्प होता है. यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि कुल निवेश का करीब 65 फीसदी लार्ज कैप फंड्स और बाकी फ्लेक्सी, मिड या स्मॉल कैप फंड्स में होना चाहिए. निवेश में अनुशासन का होना बहुत जरूरी है और SIP म्यूचुअल फंड में निवेश का सबसे बढ़िया तरीका है. हर लक्ष्य के लिए अलग-अलग SIP पोर्टफोलियो बनाने की सलाह दी जाती है. चूंकि, इक्विटी जोखिम वाली परिसंपत्ति है, ऐसे में केवल ऐसे फंड्स में निवेश करना चाहिए, जिसकी जरूरत कम-से-कम पांच साल तक ना हो.

इक्विटी के बाद बैंक एफडी, डेट म्यूचुअल फंड या अन्य फिक्स्ड इंटरेस्ट अर्निंग वाले डेट इंस्ट्रुमेंट आते हैं. यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि इन इंस्ट्रुमेंट पर मिलने वाले रिटर्न इक्विटी से मिलने वाले रिपोर्ट से मुकाबला नहीं कर सकते हैं. आपके रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से इनका इस्तेमाल किया जा सकता है.

थोड़ा कम जोखिम लेने की क्षमता वाले लोग अधिक रकम का निवेश डेट में कर सकते हैं लेकिन इक्विटी के मुकाबले इसमें लॉन्ग-टर्म लक्ष्यों को हासिल करने में ज्यादा समय लगता है.

गोल्ड में निवेश को लेकर अहम टिप्स
कमोडिटी या गोल्ड जैसे एसेट्स भी आपके पोर्टफोलियो में हो सकते हैं लेकिन यह भी आपके रिस्क प्रोफाइल पर निर्भर करता है. मेरी व्यक्तिगत राय ये है कि इस तरह की कमोडिटीज में 10% से ज्यादा का निवेश नहीं किया जाना चाहिए.

किसी भी लक्ष्य को ध्यान में रखकर निवेश करने से पहले तीन से छह महीने का इमरजेंसी फंड बनाना नहीं भूलना चाहिए. यह किसी भी मुश्किल परिस्थिति में आपके लिए मददगार साबित होते हैं. जैसा कि मैंने शुरुआत में बताया कि कई ऐसे लोग हैं जो भविष्य को ध्यान में रखकर तैयारी नहीं करते हैं लेकिन ऐसा करना जरूरी है क्योंकि किसी भी व्यक्ति के जीवन में कभी भी मुश्किल भरी परिस्थितियां आ सकती हैं और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी वित्तीय स्थिति या जीवन के लक्ष्य क्या हैं. अपनी फाइनेंशियल कंडीशन, जोखिम लेने की क्षमता और लक्ष्यों की समीक्षा करके आप जीवन में किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार हो सकते हैं. अगर आपको लगता है कि आप खुद से फाइनेंशियल प्लानिंग नहीं कर सकते हैं तो इसके लिए सबसे बढ़िया तरीका ये है कि किसी सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर से संपर्क कीजिए.

First published in The Economic Times